बिहार सरकार अपने क्रांतिकारी फैसलों से रोज-ब-रोज नये-नये कीर्तिमान रच रही है। महात्मा गांधी जयंती के अवसर पर सरकार ने बहुप्रतीक्षित ‘जाति आधारित गणना-2022’ के आंकड़े प्रकाशित कर वंचित जमातों के लिए शासन-प्रशासन में जनसंख्या के अनुरूप भागीदारी का रास्ता खोल दिया है। पिछड़ी जमातों के लिए शिक्षण संस्थानों और सरकारी नौकरी में आरक्षण की सीमा में 15 प्रतिशत की बढ़ोतरी की गई है। अक्टूबर का महीना इस मायने में भी ऐतिहासिक रहा कि इसी माह शिक्षा विभाग ने शिक्षक भर्ती के लिए हुए परीक्षा का परिणाम घोषित किया। शिक्षा विभाग ने प्राथमिक से लेकर उच्च माध्यमिक कक्षाओं के लिए कुल 1 लाख 70 हजार शिक्षकों की भर्ती का विज्ञापन बी.पी. एस.सी, पटना द्वारा निकाला गया था। शैक्षणिक रूप से प्रशिक्षित युवाओं के लिए अपनी मेधा के बल पर शिक्षक की गरिमापूर्ण नौकरी पाने का यह सुनहरा अवसर था। 17 अक्टूबर से बी.पी. एस.सी ने रिजल्ट जारी करना शुरू किया और अगले कुछ दिनों में सारे परिणाम घोषित कर दिये गए। 1 लाख 20 हजार 336 अभ्यर्थी अंतिम रूप से शिक्षक पद पर चयनित हुए।
बिहार के छात्र ने उच्च मेधा शक्ति का प्रदर्शन करते हुए 88 प्रतिशत पदों पर चयनित हुए। एक साथ इतनी बड़ी संख्या में शिक्षकों की भर्ती भारत के इतिहास में पहली बार हुआ है। मात्र दो महीने में फार्म भरने से लेकर परीक्षा परिणाम की घोषणा बिहार की नई सरकार का शिक्षा और रोजगार के लिए प्रतिबद्धता को दर्शाती है। शिक्षा व्यवस्था के सुदृढ़ीकरण के लिए सरकार का यह कदम अतुलनीय है। राजद का सरकार में शामिल होते ही शिक्षा व्यवस्था का सुदृढ़ीकरण बिहार सरकार की प्राथमिकता सूची में शामिल हो गई है। पिछले वर्ष 09 अगस्त, 2022 को महागठबंधन की सरकार अस्तित्व में आई थी। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और उप मुख्यमंत्री तेजस्वी प्रसाद यादव के नेतृत्व में महागठबंधन की सरकार पुनर्गठित होने से नौकरी और रोजगार के आकांक्षी युवाओं में जोश का संचार देखा गया था। 2020 के चुनावी कैंपेन में तेजस्वी प्रसाद यादव ने ‘पढ़ाई, दवाई और कमाई’ वाली जिस सरकार की कल्पना की थी, राजद का सरकार शामिल होते ही उन सपनों को पंख लग गए थे। गुणवत्तापूर्ण शिक्षा से राजद का हमेशा से सरोकार रहा है। लालू प्रसाद जी के मुख्यमंत्रित्व काल में पहली बार 1994 ई. में बी.पी.एस.सी द्वारा परीक्षा आयोजित कर 25 हजार शिक्षकों की नियुक्ति हुई थी। राबड़ी देवी जी के मुख्यमंत्रित्व काल में बी.पी.एस.सी से गुणवत्तापूर्ण शिक्षकों की बहाली का सिलसिला जारी रहा। वर्ष 2000 में लगभग 13 हजार शिक्षकों की नियुक्ति हुई थी। उसी शासन में बी.पी.एस.सी द्वारा 34540 शिक्षकों की भर्ती निकाली गई थी जो किसी कारणवश बाधित हो गई थी। बीच के 23 वर्षों में बी.पी.एस.सी द्वारा परीक्षा आयोजित कर शिक्षक चुनने का यह क्रमपूरी तरह बाधित रहा जिसका दुष्परिणाम बिहार को भुगतना पड़ा है। बिहार के नौनिहालों के बेहतर भविष्य के लिए यह जरूरी है कि गुणवत्ता के उच्च मानक की कसौटी पर कसे गए शिक्षकों को विद्यालयों में नियुक्त किया जाए। तेजस्वी प्रसाद यादव के सुझाव से बिहार सरकार ने यह कारनामा कर दिखाया है।
शिक्षा का संविधान की समवर्ती सूची में होना राज्यों के लिए हमेशा से समस्या का कारण बनती रही है। बिहार जैसे विकासशील राज्य के लिए शिक्षा जैसे व्यापक क्षेत्र के लिए पर्याप्त संसाधन जुटाना हमेशा से चुनौतीपूर्ण रहा है। केन्द्र द्वारा प्रायोजित योजनाओं के कारण राज्यों पर बढ़ता बोझ मुसीबतों को बढ़ाती रही हैं। समग्र शिक्षा अभियान जैसे केन्द्र प्रायोजित योजना में भाजपा सरकार द्वारा अपेक्षित सहयोग में कमी और केन्द्रांश में लगातार कटौती से बिहार की शिक्षा व्यवस्था के समक्ष कई चुनौतियां दर पेश होती रही हैं। भारत सरकार ने समग्र शिक्षा अभियान के लिए वित्तीय वर्ष 2023-24 के लिए बजट में पिछले वर्ष की तुलना में मात्र 70 करोड़ की वृद्धि की है, जो कि पूरे देश के लिए मामूली है। राष्ट्रीय मेधावी छात्रवृत्ति योजना मद में वित्तीय वर्ष 2020-21 की तुलना में 9 करोड़ की कटौती कर दी है। यह भाजपा सरकार की सार्वजनिक शिक्षा व्यवस्था को प्रति उपेक्षापूर्ण नजरिये को दर्शाता है। बिहार की शिक्षा व्यवस्था को सुचारू ढंग से संचालित रखने के लिए बिहार सरकार ने विगत वर्ष 3 हजार करोड़ की राशि मांगी थी। जबकि केन्द्रीय शिक्षा मंत्रालय के अप्रूवल बोर्ड ने मात्र 9184 करोड़ की मंजूरी दी थी। बिहार सरकार की मांग और केन्द्र के आंवटन में बहुत बड़ी खाई है। स्पष्ट है कि केन्द्र की भाजपा सरकार अपने दायित्वों के निर्वहन में असफल रही है।
भाजपा के नेतृत्व वाली केन्द्र सरकार की बिहार के प्रति उपेक्षापूर्ण रवैये से बिहार की जनता भलीभांति अवगत हैं। ऐसी परिस्थिति में केन्द्र सरकार द्वारा राशि आवंटन में सौतेला व्यवहार झेल रही बिहार सरकार का अपने बलबूते शिक्षा व्यवस्था को पटरी पर लाने का प्रयास प्रशंसनीय है। 2 नवम्बर का 2023 का दिन बिहार के इतिहास में गौरवपूर्ण उपलब्धि के रूप में याद किया जाएगा। गांधी मैदान, पटना में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और उप मुख्यमंत्री तेजस्वी प्रसाद यादव के हाथों बी.पी.एस.सी द्वारा नवचयनित 25 हजार शिक्षकों को नियुक्ति पत्र दिया। शेष बचे 95 हजार शिक्षकों को उनके जिला मुख्यालयों पर नियुक्ति पत्र दिया गया। बिहार सरकार ने शिक्षकों की भर्ती के लिए दूसरे चरण की प्रक्रिया शुरू कर दी है। शीघ्र ही परीक्षा आयोजित कर 1 लाख 12 हजार से अधिक शिक्षक नियुक्त किये जाएंगे। अपनी चुनावी घोषणा को फलीभूत करने के लिए तेजस्वी ने सरकार के नीति नियंताओं के साथ मिलकर योजना बनाई और धरातल पर उतारने के लिए मेहनत की। उसका प्रतिफल है कि बिहार में नौकरियों की बरसात होने लगी है। मेध ावी छात्रों में पढ़-लिखकर कुछ हासिल करने का हौसला बढ़ा है। लोगों की व्यवस्था के प्रति विश्वास बढ़ा है, यह बहुत बड़ी उपलब्धि है। शिक्षा मंत्री चंद्रशेखर ने कहा कि शिक्षकों की बहाली ऐतिहासिक कार्य है। इतनी बड़ी संख्या में एक साथ किसी भी राज्य में बहाल नहीं किये गए हैं। नवचयनित शिक्षकों का विद्यालयों में पदस्थापन शुरू हो चुका है। नये पदस्थापन से दूरदराज के इलाकों में स्थापित नव उत्क्रमित उच्च माध् यमिक विद्यालयों में पठन-पाठन की व्यवस्था सुदृढ़ होने वाली है। छात्र और अभिभावकों के मानस में उम्मीदों और संभावनाओं का प्रस्फुटन होने लगा है। प्रतिनियुक्ति के भरोसे चलने वाले विद्यालय अब नव पदस्थापित शिक्षकों के कंधों पर सवार होकर ऊंची उड़ान भरने का स्वप्न देख सकते हैं। परंतु क्या यह स्वप्न छात्र, अभिभावकों के साथ शिक्षक और विद्यालय प्रशासन के समन्वय के बिना फलीभूत होना संभव है?
विद्यालय प्रशासन के उच्चतर पदों पर बैठ अधिकारियों की स्वेच्छाचारिता इस उम्मीद पर पानी फेरने का काम करती रही है। छुट्टी के कैलेंडर को ताख पर रखकर महत्त्वपूर्ण त्योहारों के दिन विद्यालय को खोलना, बिना वेतन के औपबंधिक नियुक्ति पत्र बांटना और महत्वपूर्ण त्योहारों की छुट्टियों में प्रशिक्षण आयोजित करना नव चयनित शिक्षकों के लिए परेशानी का कारण बना हुआ है। स्पष्ट निर्देश के अभाव में पदस्थापन के पहले से ही शिक्षकों को जिला मुख्यालय, प्रशिक्षण संस्थानों और विद्यालयों के बीच लगातार दौड़ना-भटकना पड़ा है। ये घटनाक्रम नवचयनित शिक्षकों को नौकरी मिलने की खुशी से ज्यादा उनमें आक्रोश पैदा कर रहे हैं। शिक्षा व्यवस्था की बेहतरी के लिए जरूरी है कि शिक्षकों के साथ समन्वय स्थापित कर शैक्षणिक-प्रशैक्षणिक गतिविधियां आयोजित किए जाएं। शिक्षकों का प्रशिक्षण नियमित अंतराल पर हो। स्थानांतरण चक्रण पद्धति से पारदर्शी व्यवस्था के तहत होनी चाहिए। शिक्षकों को अनावश्यक रूप से प्रताड़ित और दंडित करने का सिलसिला बंद होना चाहिए। नवचयनित कई शिक्षकों का नियुक्ति पत्र इसलिए रद्द कर दिया गया कि वे संगठन का निर्माण में संलग्न थे। संगठन बनाना अपराध नहीं है कि उनसे नौकरी मिलने की खुशियां छिन ली जाएं। उच्च पदस्थ पदाधिकारियों का यह रवैया लोकतांत्रिक मूल्यों के अनुकूल तो कतई नहीं है। बबीता चौरसिया का नियुक्ति पत्र रद्द करने का मामला हैरत में डालने वाला है। उम्मीद है कि शैक्षिक प्रशासन संवेदनशील होकर शिक्षकों की समस्या का समाधान निकालेंगे। वर्तमान दौर का शिक्षक भर्ती अभियान बिहार की शिक्षा व्यवस्था के लिए बुनियादी रूप से परिवर्तनकामी साबित होगा। विद्यालयों में शिक्षकों की कमी दूर होने से शिक्षा व्यवस्था पर सकारात्मक असर पड़ेगा और नौनिहालों के लिए गुणवत्तापूर्ण शिक्षा हासिल करना अब चुनौती नहीं रहेगी।