रोहित शर्मा महान भारतीय ऑलराउंडर कपिल देव और धुरंधर विकेटकीपर, सफल कप्तान व फिनिशर महेंद्र सिंह धोनी के क्लब से जुड़ना चाहते थे, जिन्होंने क्रमशः 1983 और 2011 में भारत को विश्व कप चैम्पियन बनाया था। लेकिन नियति ने रोहित को सौरव गांगुली के साथ खड़ा कर दिया, जिनके नेतृत्व में भारतीय टीम ने 2003 के विश्व कप में शानदार प्रदर्शन किया था, लेकिन फाइनल में वह रिकी पोंटिंग के नेतृत्व वाली आस्ट्रेलिया की टीम से हार गई थी। ऐसे ही, विराट कोहली देश के दो महानतम बल्लेबाजों सुनील गावस्कर और सचिन तेंदुलकर के क्लब में शामिल होने से चुक गए। गावस्कर 1983 की विश्व विजेता टीम में थे, लेकिन कप्तान नहीं थे। इसी तरह तेंदुलकर 2011 की विश्व विजयी टीम में थे, लेकिन कप्तान नहीं थे। विराट कोहली इस विश्व कप में कप्तान नहीं थे, लेकिन उम्मीद की जा रही थी कि अविस्मरणीय प्रदर्शन कर चुका यह बल्लेबाज इस विश्व विजयी टीम में शामिल होता। बल्कि भारत अगर फाइनल जीत जाता, तो दो विश्व विजयी टीम में उपस्थिति दर्ज कराने वाले कोहली देश के पहले क्रिकेटर होते। लेकिन शायद नियति को यह मंजूर नहीं था। खेल में हार-जीत सामान्य है। विश्व कप क्रिकेट के फाइनल में भारतीय टीम को मिली हार भी इस अर्थ में सामान्य ही है। लेकिन दो कारणों से यह हार कचोटती है। एक इसलिए कि रोहित की यह टीम फाइनल तक कोई मैच नहीं हारी थी। दूसरा कारण यह है कि हर तरफ ऐसा माहौल बना दिया गया था कि भारत फाइनल जीतेगा ही। सटोरियों ने भी भारत पर दांव लगाया था। फिर टीम इंडिया क्यों हार गई?
किसी भी खेल की तरह क्रिकेट में भी यह पुराना सिद्धांत है कि नाकआउट स्टेज में खराब प्रदर्शन करने से अच्छा है ग्रुप स्टेज में खराब प्रदर्शन करना। चूंकि कोई भी टीम लगातार जीतती नहीं रह सकती, लिहाजा ग्रुप स्टेज में एक-दो मैच हारने पर टीम इंडिया अपनी कमजोरी पकड़ सकती, फिर खुद को सुधारती। जैसे कि
आस्ट्रेलिया के साथ हुआ, उसने शुरुआती दो मैच हारे। आस्ट्रेलिया अपने अभियान की शुरुआत अमूमन इसी तरह करता है। पर ग्रुप स्टेज में भारत के शानदार प्रदर्शन करने, फिर सेमी फाइनल में भी जीत से यह धारणा बन गई कि टीम इंडिया जीतेगी ही। धारणा इसलिए भी बनी, क्योंकि टूर्नामेंट के पहले ही मैच में उसने आस्ट्रेलिया को हराया था। पर फाइनल में ऐसा नहीं हुआ, क्योंकि ऐसे महत्वपूर्ण मैचों में आस्ट्रेलिया हमेशा अपने प्रतिद्वंद्वी से आगे रहता है। आस्ट्रेलियाई क्रिकेट में खिलाड़ी नहीं, टीम का महत्व है। अफगानिस्तान के खिलाफ मैच में ग्लेन मैक्सवेल ने शानदार खेल दिखाया, फाइनल में वही काम ट्रेविस हेड ने किया। वास्तविकता यह है कि टीम इंडिया की कमजोरियां फाइनल से पहले ही सामने आने लगी थीं, लेकिन जीत के जोश में उस तरफ ध्यान नहीं दिया गया। नीदरलैंड्स के खिलाफ आखिरी ग्रुप मैच में भारत की गेंदबाजी की सीमा सबसे स्पष्ट रूप से सामने आई।
जिन भारतीय गेंदबाजों ने श्रीलंका और दक्षिण अफ्रीका को सौ रन के भीतर समेट दिया था, उसी भारतीय गेंदबाजी के खिलाफ अपेक्षा कृत कमजोर नीदरलैंड्स की टीम ने दो सौ से ज्यादा रन बनाये । सेमी फाइनल में भारतीय गेंदबाजी की सीमा एक बार फिर सामने आई, जब एक समय मैच फंस चुका था। लेकिन भारत ने 397 रनों का जो टोटल खड़ा कर दिया था, उसे पार कर न्यूजीलैंड क्यों, किसी भी टीम के लिए मैच जीत लेना असंभव था। फिर सेमी फाइनल में सात विकेट लेकर मोहम्मद शमी ने इतिहास रच दिया। भारतीय गेंदबाजी की कमियां फाइनल में हार के रूप में सामने आई, जब न सिर्फ हमारा टोटल ढाई सौ से भी कम था, बल्कि पिच भी हमारे अनुकूल नहीं था। फाइनल मैच के लिए अहमदाबाद को क्यों चुना गया, यह सवाल तो अपनी जगह है ही, क्योंकि मुंबई या कोलकाता इससे बेहतर मैदान होते। फिर अहमदाबाद को चुना ही गया, तो इसकी पिच ऐसी क्यों तैयार की गई, इसका भी कोई जवाब नहीं है, जिसमें न तो भारत की बल्लेबाजी चली, न गिरते ओस में भारतीय गेंदबाज, खासकर स्पिनर चले। महत्वपूर्ण मैचों में टॉस की भूमिका होती है। न्यूजीलैंड के खिलाफ रोहित शर्मा ने टॉस जीता, बल्लेबाजी ली और चार सौ के करीब रन बनाकर जीत पक्की की। लेकिन फाइनल में तो रोहित शर्मा अहमदाबाद की पिच भी नहीं पढ़ पाये। जबकि आस्ट्रेलियाई कप्तान ने फोटो खींचकर पिच पढ़ ली थी। इसीलिए तो अमूमन टॉस जीतकर बल्लेबाजी करने वाले आस्ट्रेलिया ने अहमदाबाद में पहले फील्डिंग ली। मानो पिच खराब होना और टॉस हारना ही काफी न हो, टीम फाइनल में भारत की हार के बाद अहमदाबाद के नरेंद्र मोदी स्टेडियम की सूखी और धीमी पिच की अनेक विशेषज्ञों ने स्वाभाविक ही आलोचना की है। रामचंद्र गुहा ने विश्व कप के दौरान ही अहमदाबाद के स्टेडियम पर एक लेख लिखा था, हालांकि वह लेख इस स्टेडियम के दो छोरों पर केंद्रित था, जो पहले क्रमशः अडाणी और अंबानी ऐंड्स थे, लेकिन बाद में किसी कारण से वे नाम हटा दिए गए।
सच्चाई यह है कि विश्व कप के दौरान अहमदाबाद में हुए तीन मैच किसी-न-किसी वजह से विवादास्पद रहे। पांच अक्तूबर को पहला मैच न्यूजीलैंड और इंग्लैंड के बीच हुआ, लेकिन इसमें स्टैंड खाली थे। अहमदाबाद के लोगों का कहना था कि उन्होंने भारत-पाकिस्तान और फाइनल मैच के टिकट खरीदे हैं, लिहाजा इस मैच में उनकी दिलचस्पी नहीं। वैसे में आयोजकों ने अहमदाबाद की करीब 30,000 महिलाओं को मुफ्त टिकट दिये, साथ में मुफ्त लंच और चाय का कूपन भी था। उसी दिन वीरेंद्र सहवाग ने ट्वीट किया था कि अगर भीड़ नहीं है, तो स्कूली बच्चों को मुफ्त टिकट देने चाहिए थे, ताकि वे विश्व कप का मैच देख सकें। लेकिन भाजपा का तर्क था कि महिला आरक्षण बिल संसद से पारित होने के कारण महिलाओं को टिकट दिए गए। कहा यह भी गया कि अत्यधिक गर्मी के कारण स्टैंड्स में बैठकर मैच देखना कठिन था।
ऐसे ही, 14 अक्तूबर को भारत-पाकिस्तान मैच में दर्शकों के व्यवहार पर पाकिस्तान क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड ने आईसीसी से शिकायत करने की बात की थी। बाबर आजम के टॉस हारते ही दर्शकों ने उनकी ऐसी हूटिंग शुरू की कि वरिष्ठ पत्रकार राजदीप सरदेसाई को इसपर टिप्पणी करनी पड़ी कि जिस शहर में मेरा जन्म हुआ, वहां के दर्शकों का यह व्यवहार ठीक नहीं। यह क्रिकेट नहीं है। पूर्व भारतीय क्रिकेटर और भाजपा सांसद गौतम गंभीर ने भी दर्शकों के इस व्यवहार की आलोचना की। ऐसे ही, मोहम्मद रिजवान जब आउट होकर पैवेलियन लौट रहे थे, तब दर्शकों ने जय श्री राम के नारे लगाये, जिसका वीडियो वायरल हुआ। जबकि आकाश चोपड़ा का कहना था कि कुछ दर्शकों के व्यवहार के वीडियो वायरल करना एजेंडा चालित है।
मैच खत्म होने के बाद पाकिस्तान के टीम डाइरेक्टर मिकी आर्थर ने टिप्पणी की थी कि यह आईसीसी के मैच के बजाय बीसीसीआई द्वारा आयोजित मैच लग रहा था। हालांकि भूलना नहीं चाहिए कि अतीत में भारतीय खिलाड़ी पाकिस्तान में भीड़ के शिकार हुए हैं। 1989 में तत्कालीन भारतीय कप्तान श्रीकांत पर तो भीड़ ने हमला तक किया था। लेकिन 2023 में विश्व कप के मैच में अहमदाबाद के स्टेडियम में इसकी उम्मीद नहीं थी, जिसे ईडन गार्डन या वानखेड़े का विकल्प बनाने की कोशिश हो रही है। विश्व कप कवर करने भारत आये द न्यूयार्क टाइम्स के पत्रकार मुजीब मशाल की टिप्पणी थी, भारत-पाकिस्तान मैच के लिए अनेक पाकिस्तानियों को, जिनमें वहां के पत्रकार भी थे, वीजा तक नहीं दिया गया था, जबकि उन्होंने टिकट खरीद लिए थे।’ जबकि 2011 के विश्व कप में भारत-पाकिस्तान का मैच न सिर्फ मोहाली में हुआ था, बल्कि तत्कालीन मनमोहन सिंह सरकार ने तब 6,500 पाकिस्तानियों को वीजा दिया था। तस्वीर का दूसरा रुख यह है कि इसी विश्व कप में हैदराबाद के राजीव गांधी इंटरनेशनल स्टेडियम में पाकिस्तान बनाम श्रीलंका के मैच में दर्शक पाकिस्तान के पक्ष में नारे लगा रहे थे। जब बाबर आजम बैटिंग करने उतरे तो भीड़ ने उनका स्वागत किया, जबकि रिजवान ने जब शतक लगाकर टीम को विजयी बनाया, तब भीड़ उनके लिए नारे लगा रही थी।
फाइनल मैच में भारत की खराब स्थिति देखकर हजारों दर्शक जिस तरह स्टेडियम से निकलने लगे, उसकी भी अनेक खेल विश्लेषकों और आम प्रशंसकों ने आलोचना की है। मुंबई से आये एक खेल प्रशंसक नंबूदिरी की टिप्पणी थी, भारत की हार जब निश्चित हो गई, तभी नरेंद्र मोदी स्टेडियम से हजारों की संख्या में लोग खिसकने लगे थे। अगर मुंबई या चेन्नई में फाइनल होता, तो दर्शक ऐसा व्यवहार कतई न करते। स्टेडियम में मौजूद भीड़ अभद्र थी। मुझे यह अच्छा नहीं लगा।’ अपने भाई के साथ मुंबई से आये नंबूदिरी का कहना था, कि भारतीय टीम के सबसे चुनौती भरे समय में वे उनका हौसला बढ़ाने या सांत्वना देने के बजाय निकल गए। यही नहीं, फैसले के तुरंत बाद सोशल मीडिया पर हेड समेत आस्ट्रेलियाई खिलाड़ियों को भारतीय फैन्स की तरफ से धमकियां मिलने लगीं। यहां तक कि न्यूजीलैंड के क्रिकेटर जिमी नीशाम को भी आस्ट्रेलियाई खिलाड़ी समझकर गालियां दी गईं।
फाइनल में आस्ट्रेलिया की तरफ से जीत का रन चूंकि ग्लेन मैक्सवेल के बल्ले से निकला था, लिहाजा उनकी भारतीय पत्नी बिनी रमन को भी सोशल मीडिया पर गालियां दी गईं, जिनका उन्होंने जवाब दिया। ऐसा भी नहीं है कि अहमदाबाद को भारतीय क्रिकेट का मक्का बनाने की कोशिश इस विश्व कप में ही हुई। क्रिकेट इतिहासकार रामचंद्र गुहा ने हाल के अपने लेख में आईपीएल के टूर्नामेंट के दौरान गुजरात में जड़ें जमा चुकी क्रिकेट संस्कृति के बारे में विस्तार से लिखा है, ‘ट्वेंटी-20 क्रिकेट का ईजाद बेशक इंग्लैंड में हुआ, लेकिन यह प्रसिद्ध और लाभकारी भारत में ही हुआ। वर्ष 2008 में एक उद्यमी ललित मोदी ने आठ टीमों से आईपीएल (इंडियन प्रीमियर लीग) की शुरुआत की। इनमें से हर टीम फिल्म स्टार और उद्योगपतियों की फ्रेंचाइजी थी। खेल और व्यापार से जुड़ी ललित मोदी की गतिविधियां विवादास्पद थीं। मनी लान्डरिंग और निविदाओं की हेराफेरी के आरोपी मोदी 2010 में लंदन भाग गए और गिरफ्तारी के डर से वापस नहीं आए। इसके बावजूद उन्होंने जिस आईपीएल की नींव रखी, वह उनके गृह राज्य गुजरात में फल-फूल उठा। अहमदाबाद को कभी क्रिकेट के एक बड़े केंद्र के रूप में नहीं देखा गया। मुंबई और चेन्नई का क्रिकेट इतिहास ज्यादा सम्माननीय है, वहां के क्रिकेट प्रेमी भी खेल से गहरे तौर पर जुड़े हुए हैं। यहां तक कि खिलाड़ियों और प्रशंसकों के मामले में बंगलूरू और हैदराबाद भारतीय क्रिकेट में ज्यादा महत्वपूर्ण हैं। लेकिन केंद्र की राजनीति में मोदी-शाह के उदय के बाद क्रिकेट की राजधानी अहमदाबाद में शिफ्ट करने की कोशिश हुई। आईपीएल के फाइनल वहीं होते हैं, और अब विश्व कप का फाइनल भी वहीं हो रहा है।’ (मोर देन ए गेम मोदी ऐंड इंडिया : क्रिकेट सुप्रीमेसी, फाइनेंशियल टाइम्स, 11 नवंबर, 2023) ।
सिर्फ यही नहीं कि फाइनल के लिए तैयार की गई अहमदाबाद की घटिया पिच के बारे में बीसीसीआई ने कोई ठोस और विश्वसनीय सफाई नहीं दी, बल्कि पूर्व में विश्व कप जीत चुके दो भारतीय कप्तानों कपिल देव और महेंद्र सिंह धोनी को न बुलाने का उसका फैसला भी हैरान करने वाला था। विजडन ने वर्ष 2002 में सुनील गावस्कर और सचिन तेंदुलकर को परे हटाकर कपिल देव को 20वीं सदी में इंडियन क्रिकेटर ऑफ सेंचुरी’ घोषित किया था। उन्हीं कपिल देव को फाइनल मैच में अहमदाबाद में आमंत्रित क्यों नहीं किया गया? क्या इसलिए कि उन्होंने महिला पहलवानों के हक में आवाज उठाई थी? कुल मिलाकर, इस विश्व कप में भारतीय खिलाड़ियों ने तो शानदार प्रदर्शन किया, लेकिन क्रिकेट प्रशासन ने खिलाड़ियों के चयन से लेकर फाइनल के वेन्यू के चयन और दूसरे कई मुद्दों पर अपने पूर्वाग्रह का परिचय दिया।